पतन करने में आप विघ्न डाले ये भी सेवा है

श्री कृष्ण कहते है
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।6.1।।

अनाश्रितः कर्मफलं ' कर्म के फल की आशा रखे कार्यं कर्म करोति यः ' करने योग्य ....  ऐसा नहीं कि सेवा का मतलब है कोई चाहता है कि भाई हमें पिक्चर में जाना है, आप जरा लिफ्ट दीजिये तो उसको पिक्चर में जाये उसका भला हो इसलिए उसको कोई लिफ्ट देता हो तो उसको रोकना ये भी सेवा है जय राम जी की भैया ! मेरे को जरा फलानी पार्टी में जाना है....और पैसे नहीं है तो आप जरा थोड़ा .... आप तो जाने माने हो ....स्वामीजी के शिष्य हो .... जरा थोड़ा मेरे को २०० रुपये दो ....हमें जरा फलानी  पार्टी अटेंड करनी है .... तो आप तो नहीं दो लेकिन कोई दूसरा देता हो तो उसको भी बोल देना 'भाई ये पार्टी अटेंड करेगा चिकन की ! इसमें इसका अहित है ! कृपा करके आप उनको दे तो अच्छा है' ये भी एक सेवा है उसको पतन करने में आप विघ्न डाले ये भी सेवा है  .... और ईश्वर के रस्ते में जाने में वह  भी मांगे फिर भी आप सहयोग करे ये भी एक सेवा है सामने वाले की उन्नति किसमे होगी ये  ख्याल करके जो कुछ चेष्टा करना है और बदला   चाहना इसका नाम सेवा है भले उस वक़्त वो आदमी आपको शत्रु मानेगा लेकिन आपका जो शुद्ध भाव है देर सबेर  वो आदमी आपका ही हो जायेगा मेरे अपने आपके कितने ही हो गए  क्या मैंने जादू मारा ?  या   मेरे पास कोई कुर्सी है ? या मेरे पास कोई बाहर का प्रलोभन है ?  नहीं.... मेरे पास वह  है कि मेरे पास जो आता है उसका कैसे मंगल हो ये भाव मेरे मन में उठते रहते है लाइन में आते हैं दर्शन के बहाने , तभी भी मैं देखता हूँ किसी को साकरबूटी की जरूरत है , किसी को अमुक पुस्तक की जरूरत है किसी को खाली मुस्कान की जरूरत है, और किसी को डांट की जरूरत है , जिसकी जो जरूरत है भगवान उनका कराता है मेरा इसमें क्या होता है

पूज्य बापूजी - ऑडियो सत्संग - “सेवा ही भक्ति“

No comments:

Post a Comment